क्या कभी किसी ने आपसे पूछा है की जो GSM सिम आप यूज करते है उसकी उसकी full form क्या होती है। या फिर GSM काम कैसे करता है? GSM सिम को हम सालो से यूज कर रहे है लेकिन आज भी लोगो की इसके बारे में नहीं पता है की यह क्या होता है कैसे काम करता है। यहाँ तक की लोगो को GSM की full form भी नहीं पता है।
तो इस आर्टिकल में मैं आपको बताऊंगा की GSM Full Form क्या होती है? GSM काम कैसे करता है? इसके साथ साथ मैं आपको जीएसएम की हिस्ट्री भी बताऊंगा। तो चलिए फिर आज का टॉपिक शुरू करते है।
GSM Full Form क्या होती है?
GSM की Full Form होती है “Global System For Mobile” यह एक डिजिटल मोबाइल टेलीफोन प्रणाली है। जिसके द्वारा आप वौइस् कालिंग कर सकते है।
GSM क्या होता है?
GSM एक Second Generation (2G) का Mobile Communication system है। जिसे यूरोपियन के द्वारा बनाया गया था। जीएसएम सिस्टम कि शुरुआत सबसे पहले दिसंबर 1991 में फिनलैंड में हुई थी। और साल 2010 के बीच तक बाजार में इसकी हिस्सेदारी 90% तक हो गयी। और 193 से अधिक देशो में यह फ़ैल गया था।
जीएसएम 2G नेटवर्क को 1G नेटवर्क के बदले में बनाया गया था। 1G एक एनालॉग सेलुलर नेटवर्क था जबकि 2G एक डिजिटल सेलुलर नेटवर्क था जो 1G से कई गुना ज्यादा प्रभावशाली था। इसके बाद आती है 3GPP जो की UMTS आर्किटेकचर पर काम करता है। फिर इसके बाद 4G LTE आता है जो कि अभी तक सबसे आधुनिक है। और सभी 4G फ़ोन में यही टेक्नोलॉजी काम करती है।
GSM की History क्या है?
सन 1983 में डिजिटल सेलुलर वॉयस टेलीकम्युनिकेशन को विकसित करने का काम शुरू हुआ। जब European Conference of Postal and Telecommunications Administrations (CEPT) ने Groupe Special Mobile (GSM) कमेटी की स्थापना की थी।
पाँच साल बाद, 1987 में, 13 यूरोपीय देशों के 15 प्रतिनिधियों ने Copenhagen में पूरे यूरोप में एक आम सेलुलर टेलीफोन प्रणाली को विकसित करने और तैनात करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए और European Union नियमों को जीएसएम को एक अनिवार्य मानक बनाने के लिए पारित किया गया था।
फ्रांस और जर्मनी ने 1984 में एक संयुक्त विकास समझौते पर हस्ताक्षर किए और 1986 में इटली और यूके के द्वारा इसमें शामिल हो गए। इसके बाद 1986 में, यूरोपीय आयोग ने जीएसएम के लिए 900 MHz स्पेक्ट्रम बैंड को आरक्षित करने का प्रस्ताव दिया।
इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री Harri Holkeri ने 1 जुलाई, 1991 को दुनिया का पहला जीएसएम कॉल Kaarina Suonio जो की tampere शहर के डिप्टी मेयर थे किया था। इसके अलगे साल short messaging service की सेवा शुरू हुई। और वोडाफोन यूके और टेलीकॉम फिनलैंड ने पहले अंतरराष्ट्रीय रोमिंग समझौते पर हस्ताक्षर किए।
इसके बाद सन 1991 में 1800 MHz फ़्रीक्वेंसी बैंड के लिए जीएसएम मानक का विस्तार करने के लिए काम शुरू हुआ। और पहला 1800 MHz नेटवर्क 1993 तक uk में चालू हो गया, जिसे DCS 1800 कहा जाता है। उस वर्ष भी, टेलीकॉम ऑस्ट्रेलिया यूरोप के बाहर जीएसएम नेटवर्क को तैनात करने वाला पहला नेटवर्क ऑपरेटर बन गया।
सन 1995 में Fax, Data और SMS मैसेजिंग सेवाओं को व्यावसायिक रूप से लॉन्च किया गया था, पहले 1900 MHz जीएसएम नेटवर्क संयुक्त राज्य अमेरिका में शुरू हो गया। इसके बाद दुनिया भर में जीएसएम ग्राहकों की संख्या 10 मिलियन से अधिक हो गई। उसी वर्ष, जीएसएम एसोसिएशन का गठन हुआ। और 1996 में prepaid gsm sim card लॉन्च किए गए और 1998 में दुनिया भर में जीएसएम ग्राहकों ने 100 मिलियन का आंकड़ा पार कर लिया।
सन 2000 में कमर्शियल रूप से पहली GPRS सेवाओं को को शुरू किया गया। और पहला gprs compatible फ़ोन भी बाजार में खरीदने के लिए उपलब्ध हो गया।
इसके बाद 2001 में पहला UMTS नेटवर्क को लॉन्च किया गया। यह UMTS यानी 3G टेक्नोलॉजी GSM का हिस्सा नहीं है। इसके बाद सन 2002 में पहली Multimedia Messaging Service को शुरू किया गया। और 800 MHz फ़्रीक्वेंसी बैंड में पहला GSM नेटवर्क चालू हो गया।
इसके बाद 2003 में EDGE सर्विस की शुरुआत हुई। इसके बाद 2004 में दुनिया भर में जीएसएम ग्राहकों की संख्या 1 बिलियन से अधिक हो गई। और 2005 तक जीएसएम नेटवर्क दुनिया भर में सेलुलर नेटवर्क बाजार के 75% से अधिक का हिस्सेदार हो गया था और 1.5 बिलियन ग्राहकों को सेवा प्रदान कर रहा था।
GSM कैसे काम करता है?
अब आप जीएसएम की हिस्ट्री और gsm full form तो समझ गए। अब बात करते है की जीएसएम काम कैसे करता है। इसे समझने के लिए आपको जीएसएम का पूरा architecture को समझना जरूरी है। gsm के architecture को आप इमेज में देख सकते है। यह सारे जीएसएम आर्किटेक्चर के component है जिनसे मिलकर gsm architecture बनता है। अब आइये इन्हे एक एक करके समझते है।

MS – Mobile Station
अगर आप एक जीएसएम मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करते हो तो उस मोबाइल फ़ोन में दो चीज़े equipment और sim card होती है। इन दोनों को मिलाकर मोबाइल स्टेशन बनता है। अगर इनमें से कोई एक चीज़ भी न हो तो आपका मोबाइल फ़ोन ms नहीं है। ms होने के लिए आपके फ़ोन में एक वैलिड सिम कार्ड और इक्विपमेंट होना चाहिए।
सिम कार्ड क्या होता है कैसे काम करता है और sim full form क्या होती है? इसके ऊपर आप हमारे पिछले आर्टिकल को पढ़ सकते है। उसमे मैंने पूरी डिटेल्स में sim card के बारे में बताया है।
BTS – Base Transceiver Station
आपने घरो की छत पर अक्सर टावर को लगा देखा होगा। इस टावर के साथ एक हार्डवेयर लगा होता है यह बेस ट्रान्सीवर स्टेशन होता है। यह encrypt करता है और encode करता है। इसके अलावा भी इसके कई कार्य होते है लेकिन अभी हम इन्हे ही देखेंगे।
BSC – Base Station Controller
BSC अपने एरिया या अपने शहर में जितने भी बेस स्टेशन लगे होते है उन्हें यह कंट्रोल करने का काम करता है। यह रेडियो संसाधनों का प्रबंधन करता है। इसके बाद यह रेडियो power control करता है इसके अलावा भी यह कई काम करता है।
MSC – Mobile Switching Center
मोबाइल स्विचिंग सेंटर सारे नेटवर्क को कंट्रोल करता है। अगर बेस स्टेशन से कॉल रिक्वेस्ट msc तक नहीं पहुंची। तो आपकी कॉल नहीं लगेगी। आपकी कॉल रिक्वेस्ट अगर बेस स्टेशन से बेस स्टेशन कंट्रोलर तक पहुंच गई। लेकिन msc तक नहीं पहुंची तो कॉल नहीं लगेगी। कॉल लगने के लिए आपकी कॉल का msc तक पहुंचना बहुत जरुरी है। msc का काम होता है कॉल को सेटअप करना, कॉल को रॉउट करना और बिलिंग का काम भी msc ही करता है।
कई बार जब आप फ़ोन करते है तो आप वौइस् मैसेज सुनते है की इस रुट की सभी लाइने व्यस्त है यह मैसेज msc से आता है। कई बार आप फ़ोन करते है तो आपको सुनाई देता है की इस समय यह ग्राहक किसी दूसरी कॉल पर व्यस्त है तो यह मैसेज भी msc से ही आता है msc उस सामने वाले यूजर के bsc को कॉल रिक्वेस्ट भेजता है तो उसे bsc से यह रिप्लाई आता है की यूजर अभी व्यस्त है तो इस केस में msc आपके पास एक defualt message भेजता है की जिस ग्राहक से आप संपर्क करना चाह रहे है वह अभी किसी अन्य कॉल पर व्यस्त है कृपया कुछ देर बाद दुबारा प्रयास करे।
आप जो कॉलर ट्यून लगाते है वह भी msc के द्वारा भी सेट होता है। इसके बाद यह आपकी लोकेशन को भी लगातार अपडेट करता रहता है जब आप किसी और शहर जाते है तो आप अक्सर देखते है की आपके फ़ोन पर लिखा आता है की आप इस इस शहर में है।
MSC के चार कॉम्पोनेन्ट होते है। इन चारो कॉम्पोनेन्ट को समझने से पहले मैं आपको बता दू की msc में vlr अब इनबिल्ट आता है पहले यह अलग होते थे लेकिन अब यह हार्डवेयर एक साथ जुड़े होते है। उसके बाद auc hlr
में inbulit आता है एक ही हार्डवेयर में दोनों कॉम्पोनेन्ट होते है। इनके काम अलग है लेकिन यह हार्डवेयर जुड़े होते है।
HLR – Home Location Register
HLR में आपकी होम लोकेशन रजिस्टर होती है। इसके साथ HLR में MSISDN नंबर स्टोर होता है यह आपका मोबाइल नंबर होता है लेकिन टेलीकॉम की लाइन में इसे MSISDN नंबर कहते है। इसके बाद इसमें IMSI नंबर होता है। इसके साथ इसमें आपकी सभी सर्विस की जो आपने ली हुई है उसकी सारी जानकारी इसमें अपडेट होती है की इस ग्राहक ने यह यह सर्विस एक्स्ट्रा ली हुई है। इसके अलावा hlr में आपकी सारी डिटेल सेव होती है जब आप कोई सिम कार्ड खरीदते हो तो उस समय आप जो डॉक्यूमेंट देते है वह सारी डिटेल hlr में सेव होती है जब तक की आप उस कंपनी का सिम यूज करते है। इसके साथ hlr authentication करता है की यह आप ही है या नहीं।
VLR – Visitor Location Register
VLR में आपकी विजिटर लोकेशन रजिस्टर होती है। vlr आपकी Temporary Mobile Subscriber Identity (TMSI) को नियत करता है। vlr करंट लोकेशन सभी की सेव करता है। vlr हमेशा hlr और vlr दोनों के ग्राहकों की करंट लोकेशन को सेव करता है।
HLR और VLR में क्या अंतर है?
इनके नाम से ही इनके काम का पता चलता है hlr में आपकी होम लोकेशन रजिस्टर होती है और VLR में आपकी विजिटर लोकेशन रजिस्टर होती है। जैसे मान लीजिये आपने दिल्ली में कोई सिम कार्ड खरीदा तो आपकी डिटेल दिल्ली के hlr में सेव हो जाएगी। यानी दिल्ली आपकी होम लोकेशन है। लेकिन जब आप मुंबई जाते है किसी काम से या घूमने के लिए तो दिल्ली का hlr मुंबई के vlr को यह बताता है की यह मेरा ग्राहक है और इसकी होम लोकेशन दिल्ली है और मेरा पास इसकी सारी डिटेल है।
तब vlr समझ जाता है और जब तक आप मुंबई में होते है तब तक आपकी डिटेल मुंबई के vlr में सेव रहती है। आसान शब्दों में hlr में उन लोगो का डाटा सेव होता जो वहां उस शहर के नागरिक होते है और जिन्होंने उसी जगह से सिम कार्ड ख़रीदा है जबकि vlr में उन लोगो का डाटा सेव होता है जो वहां उस शहर के नहीं है वह बस वहां उस शहर में कुछ दिनों के लिए ही आए है।
AUC – Authentication Center
AUC का मुख्य काम कस्टम को पहचानना होता है की जिस कस्टमर की डिटेल मेरे पास सेव है क्या यह वही है या कोई और है। इसे यह A3 और A8 के algorithm से करता है। इसके लिए यह कुछ यूनिक key भी अपने पास सेव करके रखता है जिससे यह कस्टमर को पहचान सके।
EIR – Equipment Identity Register
EIR में तीन तरह की लिस्ट सेव होती है वाइटलिस्ट, ग्रेलिस्ट और ब्लैकलिस्ट। इस लिस्ट में IMEI नंबर सेव होते है। जब आप बाजार से कोई फ़ोन खरीदते है तो आप इसकी white list में सेव हो जाते है। क्योकि आपने इस फ़ोन को खरीदा है लेकिन अगर आपका फ़ोन चोरी हो जाए। और आप इसकी चोरी की पुलिस में शिकायत करे और आपका फ़ोन tracing पर हो तो इस स्थिति में वह फ़ोन ग्रेलिस्ट में हो जाएगा। क्योकि वह फ़ोन ढूंढा जा रहा है।
अगर आपका चोरी हुआ फ़ोन सालो साल से नहीं मिल रहा है और आप उसे IMEI नंबर को ब्लैकलिस्ट करना चाहते है की इस imei नंबर को भविष्य में कोई इस्तेमाल न करने पाए। तो इस स्थिति में वह फ़ोन eir में ब्लैकलिस्ट हो जाएगा।
GMSC – Gateway Mobile Switching Center
GMSC एक तरह का दरवाजा है। Gmsc तब काम करता है जब आप अपने नेटवर्क से किसी दूसरे नेटवर्क पर फ़ोन करते है जैसे आपके पास vodafone का सिम है और आप airtel पर कॉल करते है तब इस समय gmsc काम करता है। इसके अलावा जब आप अपने सर्कल के अलावा किसी और जगह फ़ोन करते है जैसे आप दिल्ली में है और आप कोलकाता फ़ोन करते है। तो इस स्थिति में msc gmsc को रिक्वेस्ट भेजता है और gmsc आपकी कॉल को रॉउट करेगा। और फिर आपका कॉल कोलकाता में लगेगा।
मोबाइल स्टेशन सबसे पहले communicate करता है बेस ट्रान्सीवर स्टेशन के साथ। उसके बाद यह बेस ट्रान्सीवर स्टेशन आपकी रिक्वेस्ट को आगे फॉरवर्ड करता है बेस स्टेशन कंट्रोलर के पास। बेस स्टेशन कंट्रोलर से मोबाइल स्विचिंग सेंटर के पास जाती है। इसके बाद आपकी कॉल लगती है अगर आप किसी दूसरे शहर या किसी दूसरे नेटवर्क ऑपरेटर को कॉल करते तो फिर आपकी कॉल gmsc तक जाएगी। इसके बाद आपकी कॉल कनेक्ट हो जाएगी।
मुझे उम्मीद है की आपको GSM Full Form और जीएसएम पर मेरे द्वारा दी गई विस्तार से जानकारी अच्छी लगी होगी। अगर फिर भी आपका कोई सवाल हो तो आप हमे निचे कमेंट करके पूछ सकते है।
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